Diseases
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• केवल चावल की प्रतिरोधी किस्में ही वायरस को वाहकों पर आक्रमण के लिए अनुमति नहीं देतीं।
File Courtesy:
“राइस”- लेखक जटा एस. नंदा तथा पवन के. अग्रवाल 2006 कल्यानी प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.216.
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प्रतिरोधी किस्मों को उगाने से रोग पर नियंत्रण होता है।
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क्लोरोटिक स्ट्रीक रोग के लक्षण :
1. वृद्धि पर रोक, नई पत्तियों की स्ट्रिपिंग या मॉट्लिंग, क्लोरोटिक स्ट्रीकिंग।
2. शूकियों का रंग फीका पड़ जाता है तथा वे अनुर्वर हो जाते हैं।
3. अन्य लक्ष्णों में शामिल हैं ऐंठन, क्रिंकलिंग, लहरदार किनारे, फोड़े, कटाई, खुरदरी सतह तथा गहरी हरी पत्तियां।
4. शिराओं में सूजन उत्पन्न होती है तथा उनकी अनियमित वृद्धि होती है।
File Courtesy:
“राइस”- लेखक जटा एस. नंदा तथा पवन के. अग्रवाल 2006 कल्यानी प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.216.
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क्लोरोटिक स्ट्रीक सर्वप्रथम भारत में कटक में 1978 (अंजनेयुलु तथा अन्य,1980) में देखा गया।
1. इसके लक्षण हैं वृद्धि का बाधित होना, धारियों का निर्माण या नई पत्तियों की मॉट्लिंग तथा क्लोरोटिक स्ट्रीकिंग।
2. शूकियों का रंग फीका पड़ जाता है तथा ये अनुर्वर हो जाती हैं।
File Courtesy:
“राइस”- लेखक जटा एस. नंदा तथा पवन के. अग्रवाल 2006 कल्यानी प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.216.
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प्रतिरोधी चावल किस्मों की खेती से इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
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• राइस येलो मॉट्ल के नियंत्रण के लिए पारंपरिक विधियों का इस्तेमाल किया जाता है तथा प्रतिरोधी नस्लों को उगाया जाता है।
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राइस येलो मॉट्ल वायरस का संचरण:
1. इस रोग का वायरस उपकुल Criocerinae, Cryptocephalinae, Galerucinae (Sesselia pusilla), Halticinae (Chaetocnema spp.) तथा Hispinae (Trichispa sericea) से आने वाले क्रिसोमेलिड बीटल द्वारा संचरित होता है।
2. लंबी सींग वाला टिड्डा Conocephalus merumontanus भी इसके वायरस का संचरण करता है। (Bakker, 1974).
3.Chaetocnema pulla खेतों में वायरस का प्रसार करता है।
4. कभी-कभी S. pusilla, C. pulla तथा T. sericea 15 मिनट में वायरस को ग्रहण करते हैं और 15 मिनट में उसका संचार भी करते हैं।
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1. राइस येलो मॉट्ल वायरस का आकृति-विज्ञान
2. प्रयोगशाला वाली दशाओं में यह वायरस स्थायी होता है तथा उनका शुद्धीकरण आसान हो जाती है (बेकर,1970, 1974)। बेहतरीन शुद्धता के लिए संक्रमण के 10-12 दिनों बाद ताजा या गहरे-शीतित नव चावल पत्तियों की कटाई उत्तम मानी जाती है।
3. छोटे टुकड़े को 0.1 M फॉस्फेट बफर pH 5.0 + 0.2% 2-मर्कैप्टोइथेनॉल (1 g पत्तियां /20 ml बफर) में समांगीकृत किया जाता है। कपड़े से निचोड़ा जाता है। क्लोरोफॉर्म (5 मिनट) के साथ एमल्सीकृत किया जाता है तथा कम रफ्तार में अपकेंद्रित किया जाता है।
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http://www.dpvweb.net/dpv/showdpv.php?dpvno=149
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राइस येलो मॉट्ल के विकास को बढ़ावा देने वाले कारक:
• वाहकों की उपस्थिति
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राइस येलो मॉटल वायरल रोग के लक्षण:
1. यह वायरस पत्तियों के रंग को फीका करता है, अथवा इन्हें पीला बना डालता है, वृद्धि को रोकता है तथा चावल में अनुर्वरता लाता है।
2. संक्रमित चावल के पौधे पहले बांध के पास पाए जाते हैं, जल्द ही वे खेत में अन्य स्थानों में भी फैल जाते हैं।
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http://www.dpvweb.net/dpv/showdpv.php?dpvno=149
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1. राइस येलो मॉटल वायरस को सबसे पहले केन्या में देखा गया।
2. यह रोग लिबेरिया, सिएरा लिओन तथा तंजानिया में भी पाया गया।
3. वृद्धि अवस्था में संक्रमण से उपज में काफी हानि होती है तथा गंभीर स्थितियों में प्रभावित पौधा मृत हो सकता है।
File Courtesy:
“राइस”- लेखक जटा एस. नंदा तथा पवन के. अग्रवाल, कल्यानी प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.215
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1. राइस रग्ड स्टंट वायरस रोग के पारंपरिक नियंत्रण में प्रतिरोधी किस्मों की खेती के अलावा कोई अन्य विधी नहीं शामिल है। 2. चावल की कुछ किस्में भूरे टिड्डों, वायरस तथा दोनों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।
3. वाहक के प्रति प्रतिरोधी वाहक में रोग की संभावना कम पाई जाती है।
4. इस रोग को कम करने के लिए समशीतोष्ण देशों में प्रवासी टिड्डों के ऊपर कीटनाशी का अनुप्रयोग किया जा रहा है।
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http://www.knowledgebank.irri.org/ricedoct or/index.php?option=com_content &view= article&id=564&Itemid=2769
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• राइस रैग्ड स्टंट रोग के नियंत्रण की विधियों में शामिल है पारंपरिक विधि से नियंत्रण करना।
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1. राइस रैग्ड स्टंट रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं:
2. संक्रमित पौधा बुरी तरह से प्रभावित होता है, जिसकी आरंभिक वृद्धि अवस्था प्रभावित होती है। पत्तियां छोटी और गहरी हरी हो जाती है, जिसके किनारे कक्रच बनाते हैं।
3. पत्र फलक के शीर्ष या आधार ऐंठन आ जाती है, जिससे उनका आकार सर्पिल हो जाता है। पत्तियों के किनारे असमान हो जाते हैं तथा ऐंठन की वजह से पत्तियां खुरदरी दिखाई पड़ती हैं।
4. पत्तियों के खुरदरे हिस्से पीले से पीले-भूरे रंग के हो जाते हैं। पत्र फलक तथा आवरण पर शिरा फूल जाती है।
File Courtesy:
http://www.knowledgebank.irri.org/ricedoctor/I ndex.php?option=com_content &view=articl e&id=563&Itemid=2768
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1. राइस रैग्ड स्टंट रोग को पहले पहल 1976 में इंडोनेशिया में देखा गया तथा बाद में यह एशिया के चावल उत्पादक क्षेत्रों में भी पाया जाने लगा।
2. राइस रैग्ड स्टंट रोग इसी नाम के वायरस द्वारा उत्पन्न होता है तथा यह विधिवत तरीके से भूरे टिड्डों Nilaparvatha lugens Stal द्वारा फैलता है।
File Courtesy:
http://www.pps.org.tw/pdf/EJ112199700383.pdf
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1. फेनाइट्रोथिन, डायजिनोन, कार्बेराइल, मेलाथियॉन तथा वैमिडोथिऑन जैसे रसायनों से इस रोग का नियंत्रण किया जा सकता है।
2. कार्बेराइल को Nephotetix cincticeps के विरुद्ध काफी प्रभावी माना जाता है।
File Courtesy:
“राइस”- लेखक जटा एस. नंदा तथा पवन के. अग्रवाल, कल्यानी प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.214.
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-12 15:16
• चावल के ड्वार्फ रोग का नियंत्रण पारंपरिक विधियों द्वारा तथा प्रतिरोधी किस्मों के इस्तेमाल द्वारा किया जा सकता है।
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ड्वार्फ रोग को बढ़ावा देने वाले कारक:
1. Nephotetix cincticeps तथा Recilia dorsalis जैसे वाहकों की उपस्थिति।
2. प्रथम तथा द्वितीय इन्स्टार रोग के प्रसार में अधिक प्रभावी होते हैं।
File Courtesy:
“राइस”- लेखक जटा एस. नंदा तथा पवन के. अग्रवाल, कल्यानी प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.214.
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ड्वार्फ रोग के लक्षणों में शामिल हैं:
1. पौधे की वृद्धि बाधित होना तथा पत्तियों पर क्लोरोटिक या गेहुंए रंग की चित्ती।
2. चित्तियां पत्रावरण पर भी दिखाई पड़ती हैं। कभी-कभी दूरस्थ हिस्से पर तथा पुरानी संक्रमित पत्तियों पर पीलापन भी उभर आता है।
3. संक्रमित पुरानी पत्तियां क्षीण टिलर्स का निर्माण करती हैं।
4. आरंभिक अवस्था में संक्रमण उत्पन्न होने पर टिलर्स की संख्या कम हो जाती है।
5. जड़ों की वृद्धि भी कम हो जाती है तथा जड़े क्षैतिज रूप से फैलने लगती है।
File Courtesy:
“राइस”- लेखक जटा एस. नंदा तथा पवन के. अग्रवाल, कल्यानी प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.214.
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1. सर्वप्रथम वर्ष 1983 में ड्वार्फ रोग की पहचान जापान में की गई।
2. पत्तियों के टिड्डों द्वारा यह रोग फैलता है।
3. वायरस का संचरण वाहकों के अंडों द्वारा होता है।
4. यह रोग जापान, कोरिया तथा चीन में पैदा होता है।
File Courtesy:
“राइस”- लेखक जटा एस. नंदा तथा पवन के. अग्रवाल, कल्यानी प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.214.